#धन #का #अहंकार..✍️
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लाहौर में दुलीचन्द नामक एक करोडपति सेठ रहते थे। उन्हें अपनी धन-सम्पदा का बड़ा अहंकार था।
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यह दर्शाने के लिये कि मैं बीस करोड़ की सम्पत्ति का मालिक हूँ, उन्होंने अपने निवास पर बीस पताकाएँ (20 झंडी) लगा रकखी थीं।
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एक बार जब उन्हें पता चला कि शहर के एक सराय में गुरु नानक ठहरे हुए हैं तो वे उनसे मिलने गये।
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वहाँ उन्होंने गुरु नानक के चरणों में शीश नवाकर स्वर्णमुद्राओं की एक पोटली उन्हें देते हुए कहा, आपकी और क्या सेवा करूँ ?
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नानकदेव जान गये कि इस व्यक्ति को अपने धन का बड़ा अहंकार है।
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उन्होंने उसे एक सूई देते हुए कहा कि इसे अगले जन्म में वापस कर देना।
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दुलीचन्द इसे गुरुका प्रसाद मानकर घर वापस लौट आये और सूई को उन्होंने पूजागृह में एक ओर रख दिया।
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अकस्मात् उनके ध्यान में आया कि गुरु नानक ने इसे अगले जन्ममें वापस करने को कहा है, मगर यह भला कैसे सम्भव है ?
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मरते वक्त क्या सूई साथ में जा सकती है ? वे गुरु से पुनः मिलने तुरंत सराय में गये और उनसे कहा...
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अभी थोड़ी देर पहले आपने इस सूई को पुनः अगले जन्म में वापस करनेको कहा था। मगर यह कैसे सम्भव है ?
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मरते वक्त तो मनुष्य खाली हाथ जाता है !
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गुरुदेव ने कहा, दुलीचन्द ! जब मरते वक्त तू एक सुई को भी नहीं ले जा सकता, तब इतनी सारी सम्पत्ति कैसे ले जा सकेगा ?
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ये शब्द सुनते ही दुलीचन्द के अन्तर्चक्षु (मन की आंखे) खुल गये। वे घर लौट आये।
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अपनी सारी सम्पत्ति गरीबों एवं जरूरत मन्दों में बाँट दी और गुरुदेव के शिष्य बन गये।
किसी ने कहा बहुत सुकून में रहते हो।
क्या किसी की शरण में रहते हो ?
हमने जवाब दिया कि
श्री राधेगोविंद की शरण में रहते हैं
और वो जिस हाल में रखते हैं
उस हाल का शुक्र अदा करते हैं।
कृपा हे श्री राधेगोविन्द... 🙏😊
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लाहौर में दुलीचन्द नामक एक करोडपति सेठ रहते थे। उन्हें अपनी धन-सम्पदा का बड़ा अहंकार था।
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यह दर्शाने के लिये कि मैं बीस करोड़ की सम्पत्ति का मालिक हूँ, उन्होंने अपने निवास पर बीस पताकाएँ (20 झंडी) लगा रकखी थीं।
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एक बार जब उन्हें पता चला कि शहर के एक सराय में गुरु नानक ठहरे हुए हैं तो वे उनसे मिलने गये।
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वहाँ उन्होंने गुरु नानक के चरणों में शीश नवाकर स्वर्णमुद्राओं की एक पोटली उन्हें देते हुए कहा, आपकी और क्या सेवा करूँ ?
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नानकदेव जान गये कि इस व्यक्ति को अपने धन का बड़ा अहंकार है।
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उन्होंने उसे एक सूई देते हुए कहा कि इसे अगले जन्म में वापस कर देना।
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दुलीचन्द इसे गुरुका प्रसाद मानकर घर वापस लौट आये और सूई को उन्होंने पूजागृह में एक ओर रख दिया।
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अकस्मात् उनके ध्यान में आया कि गुरु नानक ने इसे अगले जन्ममें वापस करने को कहा है, मगर यह भला कैसे सम्भव है ?
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मरते वक्त क्या सूई साथ में जा सकती है ? वे गुरु से पुनः मिलने तुरंत सराय में गये और उनसे कहा...
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अभी थोड़ी देर पहले आपने इस सूई को पुनः अगले जन्म में वापस करनेको कहा था। मगर यह कैसे सम्भव है ?
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मरते वक्त तो मनुष्य खाली हाथ जाता है !
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गुरुदेव ने कहा, दुलीचन्द ! जब मरते वक्त तू एक सुई को भी नहीं ले जा सकता, तब इतनी सारी सम्पत्ति कैसे ले जा सकेगा ?
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ये शब्द सुनते ही दुलीचन्द के अन्तर्चक्षु (मन की आंखे) खुल गये। वे घर लौट आये।
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अपनी सारी सम्पत्ति गरीबों एवं जरूरत मन्दों में बाँट दी और गुरुदेव के शिष्य बन गये।
किसी ने कहा बहुत सुकून में रहते हो।
क्या किसी की शरण में रहते हो ?
हमने जवाब दिया कि
श्री राधेगोविंद की शरण में रहते हैं
और वो जिस हाल में रखते हैं
उस हाल का शुक्र अदा करते हैं।
कृपा हे श्री राधेगोविन्द... 🙏😊